Monday, August 23, 2010

रिश्ते की आज़ादी .....


लो कर दिया अब इस रिश्ते को आजाद

जो तेरा और मेरा था

नामो की कैद से आजाद

जो अब उडने लगा है खुले असमान मै

अपने वही खूबसूरत पंख फैला कर


देर तक इन्हे पिंजरों मै

हिफाज़त से बांध रखा था मैंने

अपने वही रिश्ते को

पिंजरों से सर पटकते पाया जब

इनके लहूलुहान माथो ने ...

और आप की घुटन ने

समझाया मुझे

की बहार खुले असमान मै

ज़ख्म तो इन्हे लगेगे ही

पर ... वे भरेगे भी

पर रूह तो ज़ख़्मी नहीं होगी ....

Palak






4 comments:

Udan Tashtari said...

बहुत गहन अभिव्यक्ति!

संगीता पुरी said...

रिश्‍तों के बंधन में कुछ खूबियां भी होती हैं .. रक्षाबंधन की बधाई और शुभकामनाएं !!

sunil said...

Kisi ne kaha mein 'Uska" hoon...kisi ne kaha mein "iska" hoon...mein to sabka hoon..magar mera koi nahi yahan pe..mein un sab ka hoon jo muje nibhana jaante hai..muje mehsoosh karna jaante hai.....mein ek "Rista" hoon.......

agar mein kisi naam se juda hota to aaj mein jinda nahi hota..magar mein aaj bhi dilo mein "pyyar" banke rehta hoon.....heer-ranjha...aour "laila-majnoo" na rahe to kya huwa..mein aaj bhi jinda hoon...kyun ki mein ek "rista" hoon.....

संजय भास्‍कर said...

भावपूर्ण रचना के लिये बधाई !