ये भीगी शामो का गहराता हुआ सन्नाटा कहा ले जा रहा है ...... कुछ अनकही कहानियो को बया कर रहा है , मै तलाशती उसे हर हवा के जोके मै... कानो मै जैसे वही हवाए सरगोशियाँ कर रही थी ... कही मुड के देखा तोह कोई ना था वह पर फिर भी ना जाने क्यों उसके होने का एहसास छुआ जा रहा था..... वो एहसास बंध पलकों के नीचे एक याद बन कर मचल सा गया ..... वो शक्श याद बन कर रुला सा गया.....
पलक
6 comments:
aisa hi hota hai...umda bhav..!!
अच्छा लेखन...भावपूर्ण.
जोके = झोंके
हमेशा की तरह बहुत शशक्त रचना है...भावनाओं को शब्द देना कोई आपसे सीखे...बेहतरीन...मेरा अभिवादन स्वीकार करें...
छोटी सी कविता गहरी सी बात कह दी..
Saanwali Si Ek Ladki
Dhadkan Jaisi Dilki
Dekhke Jiske Woh Sapne
Kahin Woh Main To Nahin.....
Kyun log yu chhod ke chale jaatein hai? Jaana hi tha to chale jaate..saath mein apani "yaadein" bhi le jaate! shayad unki yaado pe shayad unka bhi huqq nahi hai...kyun ki yeh ab meri ho chuki hai...unki nahi!!!!
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