Friday, July 23, 2010

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बारिश की इन बूंदों ने जब दस्तक दी दरवाज़े पर

मेहसूस हुआ ....तुम आये हो ......अंदाज़ तुम्हारे जेसा था..

हवा के हलके झोंके ने जब आहट की खिड़की पर ..

मेहसूस हुआ ....तुम चले हो ....... अंदाज़ तुम्हारे जेसा था..

मैंने बूंदों को अपने हाथ पर टपकाया तो..

एक सर्द सा एहसास हुआ..... स्पर्श तुम्हारे जेसा था..

मैंने तनहा चली जब बारिश मैं एक झोंके ने साथ दिया..

मैंने समझा तुम साथ हो मेरे ...... एहसास तुम्हारे जेसा था

फिर रुक गई वों बारिश ना रही वों बाकी आहट भी ..

मैं समझी मुझे ....तुम छोड़ गए ....अंदाज़ तुम्हारे जेसा था

7 comments:

vandana gupta said...

वाह्…………अन्दाज़ भा गया।

Anonymous said...

Wo Sawan Ki Rut Thi, Wo Barish Ke Din The Mile Sard Raton Mein Jab Hum Se Tum The

Pearl...

संजय भास्‍कर said...

कुछ तो है इस कविता में, जो मन को छू गयी।

संजय भास्‍कर said...

PALAK JI
NAMASKAR

BEHAD KHOOBSURAT KAVITA LIKHI HAI AAPNE.


SANJAY BHASKAR

M VERMA said...

बहुत नाज़ुक और शानदार रचना
एहसासों का समन्दर ....

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत सुन्दर....सारे अंदाज़ तुम जैसे थे...जाने का भी ...

Palak.p said...

Thank u all for ur valuable comment ..

Palak