बारिश की इन बूंदों ने जब दस्तक दी दरवाज़े पर
मेहसूस हुआ ....तुम आये हो ......अंदाज़ तुम्हारे जेसा था..
हवा के हलके झोंके ने जब आहट की खिड़की पर ..
मेहसूस हुआ ....तुम चले हो ....... अंदाज़ तुम्हारे जेसा था..
मैंने बूंदों को अपने हाथ पर टपकाया तो..
एक सर्द सा एहसास हुआ..... स्पर्श तुम्हारे जेसा था..
मैंने तनहा चली जब बारिश मैं एक झोंके ने साथ दिया..
मैंने समझा तुम साथ हो मेरे ...... एहसास तुम्हारे जेसा था
फिर रुक गई वों बारिश ना रही वों बाकी आहट भी ..
मैं समझी मुझे ....तुम छोड़ गए ....अंदाज़ तुम्हारे जेसा था
मेहसूस हुआ ....तुम आये हो ......अंदाज़ तुम्हारे जेसा था..
हवा के हलके झोंके ने जब आहट की खिड़की पर ..
मेहसूस हुआ ....तुम चले हो ....... अंदाज़ तुम्हारे जेसा था..
मैंने बूंदों को अपने हाथ पर टपकाया तो..
एक सर्द सा एहसास हुआ..... स्पर्श तुम्हारे जेसा था..
मैंने तनहा चली जब बारिश मैं एक झोंके ने साथ दिया..
मैंने समझा तुम साथ हो मेरे ...... एहसास तुम्हारे जेसा था
फिर रुक गई वों बारिश ना रही वों बाकी आहट भी ..
मैं समझी मुझे ....तुम छोड़ गए ....अंदाज़ तुम्हारे जेसा था
7 comments:
वाह्…………अन्दाज़ भा गया।
Wo Sawan Ki Rut Thi, Wo Barish Ke Din The Mile Sard Raton Mein Jab Hum Se Tum The
Pearl...
कुछ तो है इस कविता में, जो मन को छू गयी।
PALAK JI
NAMASKAR
BEHAD KHOOBSURAT KAVITA LIKHI HAI AAPNE.
SANJAY BHASKAR
बहुत नाज़ुक और शानदार रचना
एहसासों का समन्दर ....
बहुत सुन्दर....सारे अंदाज़ तुम जैसे थे...जाने का भी ...
Thank u all for ur valuable comment ..
Palak
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