धड़कते दिल के पैगाम सुनो आज.....
की एक मुद्दत हुई तुम्हे ये राज जताते हुए...
एक शाम मेरे नाम करो आज...
की एक अरसा हुआ तुझे पास बुलाते हुए...
हो सके तो मुझे एक महफ़िल देदो...
की उब चुके हैं उम्र यु ही तनहा बिताते हुए...
गर तुम आ सको तो लौट आओ मेरी जिंदगी में...
की ख़तम हो रहे हैं अब सब बहाना-इ-जिंदगी.. आजमाते हुए... पलक .... PG
2 comments:
jaroor ayaege hum...
बहुत बढ़िया,
बड़ी खूबसूरती से कही अपनी बात आपने.....
पूरी कविता दिल को छू कर वही रहने की बात कह रही है जी,
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