Friday, May 14, 2010

बूँद .....




कभी रुक रुक के बही आँख से
निकल के कोई "बूँद"

कभी छलक के पलक से
गिरी कोई "बूँद"

गिरी जब कभी आँख से
दामन पे रुकी आके
न सिर्फ दामन को
मन को भी भीगा गयी "बूँद" ....

कभी ख़ुशी में आँखें नाम हुई
कभी गम से बोझिल हो के भीगी
कभी बेरुखी से साकी की
कभी प्यार पा के बही "बूंद"

उतार गई प्यार का
वो सारा कच्चा रंग
सोचा नहीं था जो
वो कर गई एक "बूँद"...

पलक

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