कश्मीर में सर्दी ना होती,
मुम्बई में गर्मी ना होती,
हम भी अपनी महबूबा की बाहों में होते,
गर जिस्म पर ये वर्दी ना होती।।।
Grand salute to our soldiers
Jai_Hind
लम्हे तेरे प्यार के ......
हाँ... मैं अपना वादा निभाऊंगी,
हर हाल में मुस्कुराऊँगी...
पर... एक वादा तुम भी दो...
वादा करो...
जब जब जाओगे... लौट कर आओगे तुम...
मेरे लिए नहीं... तो न सही...
उस माँ के लिए... जिसका छोटा सा संसार हो तुम,
उस बहन के लिए...
जिसकी राखी के कर्जदार हो तुम...।
मेरे लिए नहीं... तो न सही...
उस पिता के लिए...
जो पलकों में छिपाकर आंसू कही,
हर बार तुम्हे विदा करने चले आते हैं...
तुम पढ़ न लो आँखों से दर्द अनकहे,
ये सोच... नज़रे चुराते हैं,
मुड़कर... मन भरकर...
तुम्हे देखने से कतराते हैं...
आंसू कर न दें कमजोर कहीं,
इस डर से... बिन कुछ कहे...
फिर नए इंतज़ार पर निकल जाते हैं...।
तुमने एक यही तो माँगा था, की हंसा करूँ हर हालातों में,
हाँ... मैं हसूँगी, मुस्कुराऊँगी,
तब तक... जब तक तुम वादा निभाओगे...
वादा करो... जब जब जाओगे... तुम लौट कर आओगे..।।
हम तुमसे न कुछ कह पाये
तुम हमसे न कुछ कह पाये .......
कुछ रिश्तों का सफर खामोशी से ही शुरू होता है और वो सन्नाटा हमेशा के लिये लकीर बन जाता है। ऐसा नहीं है के हम एकदूसरे को कुछ कहना या सुनना नहीं चाहते है, लेकिन कहीं किसी के जज्बात आहात न हो जाये उस ड़र से वो अनचाही चुप्पी हमेशा बरकरार रहती है। क्योंकि जो मिला है वो भी मुश्किल से मिला है कहीं कुछ कहने सुनने में हम एक अच्छा साथी न खो दे! और ये भी हो सकता है दोनों के तार एक ही जगह जुड़े हो लेकिन मज़िल एक न होने से रास्ते अलग अलग चुन लेते है। नदी के वो दो किनारे बनकर रह जाते है जो साथ होते हुए भी कभी एकदूसरे से मिल नहीं पाते और बीच में एहसास की दास्तां पानी बनकर बहती रहती है। कभी कभी दिल बैठ सा जाता है, "लगता है ड़र ये, बात ये दिल की, दिल में न रह जाये.... हम तुमसे न कुछ कह पाये, तुम हमसे न कुछ कह पाये...."
कभी कभी यूँ खामोश निगाहों से एकदूसरे को बड़ी जिजक के साथ बताने की कोशिश करते है, "तुम सुनो गौर से क्या कह रहा है समां, हमनशी छेड़ दो चाहत भरी दास्तां...." और जैसे कहाँ के दिल के तार जुड़े होते हो तो इशारें ट्यूनिंग सेट कर ही लेती है। आंखों से बयाँ भी हो जाता है और आंखों से ही इज़हार भी हो जाता है और फिर आंखों से ही जज्बात भी निकल जाते है, "इतने दिनों तक कुछ ना बताये, तुम हमकों तड़पाये.... हम तुमसे न कुछ कह पाये, तुम हमसे न कुछ कह पाये...."
कुछ रिश्तों के धागे ऐसे ही होते है, जो न एकदूसरे से जुड़े होते है नाही एकदूसरे से जुदा, न उसमें कभी गाँठ लगानी पड़ती है न खींचकर धागा लंबा करना होता है...... यूँही बेज़ुबान सी कहानी चलती रहती है जिसमें कहना सुनना कुछ नहीं होता बस मेहसूस करना होता है!
-YJ
तेरी तलाश को अपना मुकाम बना लूँ ....
फिर जरा मैं भी जी लूँगा ....,
तेरी चाहत को अपना विश्वास उढ़ा दूँ ...
फिर जरा मैं भी जी लूँगा ....,
तेरी सोच को अपने शब्दों में ढ़ाल लूँ ...
फिर जरा मैं भी जी लूँगा ....,
तेरे आँचल में अपनी दुनिया बसा लूँ ...
फिर जरा मैं भी जी लूँगा ....,
तेरी रूह में खुद को उतार लूँ ...
संग तेरे फिर , जी भर जियूँगा ....
उम्र भर
लिखना फिर से शुरू करना ऐसा है जैसे कोई पिंजड़े से किसी बेबस पंछी का आज़ादी की उड़ान की तरफ पहला पंख फैलाना... आज मैं भी इतने सालो बाद फिर इस आगंन मैं अपनी शब्दो के साथ शुरू करना चाहती हूँ।