Monday, December 15, 2008

इक दिल के सिवा !!


है क्या हमारा.. ,
कुछ ख्वाहिशों के सिवा,
चंद दिन उधार के,
उस पर कोई हक नहीं
इक वेहेम के सिवा.

किसे अपना समझते है,
यह जिंदगी कुछ नहीं
इक फरेब के सिवा
ना कोई था,
ना कोई है, ना कुछ रहेगा
इक ठंडी सी आह के सिवा.

कितनी चोट गिनती करें,
बदन पर कुछ नही रहा ज़क्मो के सिवा,'
हम थक गए
पर वोह नहीं,
सब है उसके पास
इक दिल के सिवा !!
PG

2 comments:

Anonymous said...

nakaam hasraton k siwa kuch nahi raha
duniya main ab dukhon k siwa kuch nahi raha

ek umar ho gayee hai k dil ki kitaab main
kuch khushak pattiyun k siwa kuch nahi raha

Pearl...

!!अक्षय-मन!! said...

किसे अपना समझते है,
यह जिंदगी कुछ नहीं
इक फरेब के सिवा ना कोई था,
ना कोई है, ना कुछ रहेगा
इक ठंडी सी आह के सिवा.
कमाल की पंक्तियाँ हैं बहुत कुछ कहे दिया मैं तो चोक उठा ऐसा लगा जैसे मैं ख़ुद को पढ़ रहा हूं बहुत ही प्यारी है सीधे दिल मैं उतरती है....

कितनी चोट गिनती करें,
बदन पर कुछ नही रहा ज़क्मो के सिवा,'
हम थक गए
पर वोह नहीं,
सब है उसके पास
इक दिल के सिवा !!

इनके लिए मुझ पर शब्द नही क्या कहूं कुछ समझ नही आता.....

आप दिल से लिखती हो जब भी लिखती हो..


अक्षय-मन