रोक दू इस जहाँ को,
अगर बस चले मेरा,
और रोक दू इस शाम को,
कभी ना आने दू वोह सवेरा.
ऐ हवा तुझे नही आजादी,
और नही मेरी इजाज़त,
बह जाए ना यह रूहानी खुशबू,
कुछ ऐसे है उनकी आहट.
थम जा ऐ समां,
की आज मैं उनके साथ नही,
बीते हुए लम्हों मैं जी लुंगी,
बिरह का मुझे एहसास नही.
तेरा आज मैं नही अगर,
मुकद्दरों से यह एलान है,
जहाँ-ऐ-गुमनाम तुम याद रखना,
माथे पे लिखा सिर्फ़ तेरा नाम है।
अगर बस चले मेरा,
और रोक दू इस शाम को,
कभी ना आने दू वोह सवेरा.
ऐ हवा तुझे नही आजादी,
और नही मेरी इजाज़त,
बह जाए ना यह रूहानी खुशबू,
कुछ ऐसे है उनकी आहट.
थम जा ऐ समां,
की आज मैं उनके साथ नही,
बीते हुए लम्हों मैं जी लुंगी,
बिरह का मुझे एहसास नही.
तेरा आज मैं नही अगर,
मुकद्दरों से यह एलान है,
जहाँ-ऐ-गुमनाम तुम याद रखना,
माथे पे लिखा सिर्फ़ तेरा नाम है।
एक अनछुआ सा नाम ...
पलक (PG)
3 comments:
Hi Pal,
Sundar hai...
Jaane kya dhoondti rehti hai ye aankhen mujh mein Raakh ke dher mein, shola hai na chingari hai
एक अनछुआ सा नाम इसका टाइटल ही बहुर प्यारा है.......
बहुत ही प्यारी है आपकी ये रचना ...
वक्त मिले तो मेरा ब्लॉग पर भी आना आप..
अक्षय-मन
I dont have any words for this... its just AWESOME...!
Pearl...
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