बिखरे पन्नो को बीनकर आज समेटना चाहा
मोड के कोने पन्नो के
उन मै छिपी यादो को जीना चाहा
पर वक़्त् कि धूल से वो अल्फ़ाज मिट से गये है
रिश्तो कि वो मिठास ,
वो खुबसुरत जस्बात सिमट से गये है ..
रेत मै पडे पन्नो कि निशान के पास जाकर
फ़िर् उस निशान को गेहरा बनाना चाहा
फ़िर् उन खमोशियो मै होति बेजुबान बतो से
खुद का तूटा हुआ रिश्ता फ़िर् से जाताना चाहा..........
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