Wednesday, March 25, 2015




सासो का  बसर तुम से तुम्ही तक है ,

हा मेरी महोब्बत  तुम से तुम्ही तक है ,

जस्बा - ए  - इश्क़् सच न होता तो रास्ता बदल लैते ,

मिटे  हुए रस्तो का गुजर  तुम से तुम्ही तक है ,

मेरे हमसफ़र्  इन चहतो  के  रंगो  मै ,

हर रंग मेरा  तुम से  तुम्ही  तक है 

आज जिन्दगी  से कुछ्  यु  मुलक़ात्  हुए ..

कि  लगा जिन्दगी  का हर लम्हा ...

तुम से तुम्ही तक है.......


पलक 

1 comment:

संजय भास्‍कर said...

बहुत ख़ूब ब्लॉग पे वापसी का स्वागत है