Saturday, March 28, 2015



बिखरे पन्नो को बीनकर आज समेटना चाहा 
मोड के कोने  पन्नो के 
उन मै छिपी यादो को जीना चाहा 
पर वक़्त् कि धूल से वो अल्फ़ाज मिट से गये है 
रिश्तो  कि वो मिठास , 
वो खुबसुरत जस्बात सिमट से गये है ..

रेत मै पडे पन्नो कि निशान के पास जाकर
फ़िर् उस निशान को गेहरा बनाना चाहा 
फ़िर् उन खमोशियो मै होति बेजुबान बतो से 
खुद का तूटा हुआ रिश्ता फ़िर् से जाताना चाहा..........


Friday, March 27, 2015



पानी  फ़ेर् दो इन पत्तो पर कोइ 
ताकि धूल जाए  स्याहि 
जिन्दगी फ़िर् से लिखने 
का मन होता है 
कभी  -  कभी ....

पलक 

Thursday, March 26, 2015

कश्मकश......




मैने कहा  वो अजनबी है ,
दिल ने कहा ये दिल कि लगी है 
मैने कहा वो सपना है ,
दिल ने कहा वो फ़िर् भी अपना है
मैने कहा ये दो पल कि मुलाकात है ,
दिल ने कहा ये सदियो का साथ है 
मैने कहा वहा मेरी हार है ,
दिल ने कहा वहि तो "प्यार " है ..............


Wednesday, March 25, 2015




सासो का  बसर तुम से तुम्ही तक है ,

हा मेरी महोब्बत  तुम से तुम्ही तक है ,

जस्बा - ए  - इश्क़् सच न होता तो रास्ता बदल लैते ,

मिटे  हुए रस्तो का गुजर  तुम से तुम्ही तक है ,

मेरे हमसफ़र्  इन चहतो  के  रंगो  मै ,

हर रंग मेरा  तुम से  तुम्ही  तक है 

आज जिन्दगी  से कुछ्  यु  मुलक़ात्  हुए ..

कि  लगा जिन्दगी  का हर लम्हा ...

तुम से तुम्ही तक है.......


पलक