इस दिसम्बर के महीने मैं
ठीक एक साल पहले
सर्दी की काली रातों मैं
छत पर किसी कोने मैं बैठे
एक दोस्त बनाया था मैंने
थोडा सा नटखट
थोडा सा पागल
मेरी जिन्दगी के कैनवास पर
इन्द्रधनुष सा
उतरा था एक अलग ही रंग
आज फिर दिसम्बर आया है
मगर
खबर नहीं मुज को उसकी
वो इंतज़ार कर चला गया होगा
मैं नए धागों को सुलझाते
उस डोर को तोड़ बैठी
जो कभी पिछले दिसम्बर मैं
तारो तले बाँधी थी
Written form "Months of the year challenge season २" with some edition ..
1 comment:
अंतर्मन को छूती हुयी है आज की रचना ...
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