पिछले प्रहर की रात थी
तन्हाई और तेरी याद थी
वही कही से चाँद आ गया सिराहने तक
पूछने लगा
जिन्दगी कैसी है ..?
मैंने कहा कोई खास नहीं
वही हस कर फिर से पुछा
क्या चाहते हो ..?
मैंने कहा कोई चाहत नहीं
कोई आस नहीं
वही फिर मुस्कुराया और पुछा
कभी प्यार किया है ..?
मैंने कहा कुछ याद तोह नहीं
फिर नज़ारे चुराते बोला
कही धोका को नहीं दमन मैं ?
मैंने कहा ऐसे कोई बात नहीं
चाँद बोला
तोह फिर तुम से एक बात कहू
मैंने कहा कोई एतराज़ नहीं
तोह बोला
तुम ने भी ता उम्र प्यार किया है
और आज वो साथ नहीं
मैंने कुछ न कहा बस
हस कर कहा
तुम्हारी चांदनी भी तो तुम्हारे साथ नहीं
आज कही अमवस्या तो नहीं ....
क्या चाहते हो ..?
मैंने कहा कोई चाहत नहीं
कोई आस नहीं
वही फिर मुस्कुराया और पुछा
कभी प्यार किया है ..?
मैंने कहा कुछ याद तोह नहीं
फिर नज़ारे चुराते बोला
कही धोका को नहीं दमन मैं ?
मैंने कहा ऐसे कोई बात नहीं
चाँद बोला
तोह फिर तुम से एक बात कहू
मैंने कहा कोई एतराज़ नहीं
तोह बोला
तुम ने भी ता उम्र प्यार किया है
और आज वो साथ नहीं
मैंने कुछ न कहा बस
हस कर कहा
तुम्हारी चांदनी भी तो तुम्हारे साथ नहीं
आज कही अमवस्या तो नहीं ....
3 comments:
Nice post
मित्रता दिवस की ढेर सारी शुभकामनाएं .
अच्छी रचना...लेकिन टाइपिंग की गलती अखरती है...
नीरज
अच्छी प्रस्तुति
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