Friday, July 8, 2011


मासूम महोब्बत का बस इतना सा फ़साना है
रेत की हवेली है ..बारिश का अफसाना है
क्या शर्त -ऐ-महोब्बत है
क्या शर्त-ऐ-ज़माना है
आवाज़ भी ज़ख़्मी है और गीत भी गुनगुनाना है
उस पार उतेरने की उम्मीद बहोत कम है
कश्ती भी पुरानी है और तूफान को भी आना है
समजे या ना समजे वो अंदाज़ महोब्बत का
एक शक्स को अखो से एक शेर सुनना है
भोली सी अदा
कोई फिर इश्क की जिद पर है

फिर आग का दरिया है और डूब कर जाना है

5 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत खूब ...कितनी कठिनाइयाँ है पर फिर भी पार पाना है ..

Raj said...

"AAwaz bhi zakhmi hai air geet bhi gungunana hai"...aapke andaaz ko humara salam..Palak

संजय भास्‍कर said...

आपकी हर रचना की तरह यह रचना भी बेमिसाल है !
एक और सुन्दर कविता आपकी कलम से !

संजय भास्‍कर said...

 अस्वस्थता के कारण करीब 20 दिनों से ब्लॉगजगत से दूर था
आप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ,

S.N SHUKLA said...

बहुत खूबसूरत प्रस्तुति , सुन्दर भावाभिव्यक्ति , आभार

कृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारें