मासूम महोब्बत का बस इतना सा फ़साना है
रेत की हवेली है ..बारिश का अफसाना है
क्या शर्त -ऐ-महोब्बत है
क्या शर्त-ऐ-ज़माना है
आवाज़ भी ज़ख़्मी है और गीत भी गुनगुनाना है
उस पार उतेरने की उम्मीद बहोत कम है
कश्ती भी पुरानी है और तूफान को भी आना है
समजे या ना समजे वो अंदाज़ महोब्बत का
एक शक्स को अखो से एक शेर सुनना है
भोली सी अदा
कोई फिर इश्क की जिद पर है
फिर आग का दरिया है और डूब कर जाना है
5 comments:
बहुत खूब ...कितनी कठिनाइयाँ है पर फिर भी पार पाना है ..
"AAwaz bhi zakhmi hai air geet bhi gungunana hai"...aapke andaaz ko humara salam..Palak
आपकी हर रचना की तरह यह रचना भी बेमिसाल है !
एक और सुन्दर कविता आपकी कलम से !
अस्वस्थता के कारण करीब 20 दिनों से ब्लॉगजगत से दूर था
आप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ,
बहुत खूबसूरत प्रस्तुति , सुन्दर भावाभिव्यक्ति , आभार
कृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारें
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