Thursday, December 24, 2009

तेरी चाहत ...!!!


मजबूरी और बेबसी का जो है आलम,
निजात उससे पाने की चाहत है,
इंसानों को अब इंसानियत की है ज़रुरत,
बस उनको यह समझाने की चाहत है

की चाहतें तो हजारों पाल बैठे हैं,
पर न पता किस चाहत की हमसे क्या चाहत है,
की भूल बैठे ज़माना खुशियों का,
न जाने ग़मों को हमसे इतनी क्या चाहत है

चाहते तो हम भी थे चाहतों की हद्द तक,
पर न जाने क्यूँ चाहतों को हदों में सिमटने की चाहत है,
सिमटने से रोका काफी बार इन चाहतों को,
न जाने क्यूँ इन्हें शर्मा जाने की चाहत है

पर हम भी नहीं आशिक कच्चे उनके,
कर देंगे उन्हें बेपर्दा, भले उन्हें इज्ज़त से चाहत है,
हम नहीं छोडेंगे चाहत उनकी,
हमें उनकी चाहत को अपना बनाने की चाहत है
Palak G

1 comment:

Anonymous said...

हम नहीं छोडेंगे चाहत उनकी,
हमें उनकी चाहत को अपना बनाने की चाहत है

Pearl...