Monday, September 17, 2018

कुछ रेशमी है, कुछ खुरदरा
अभी बह चला है, अभी है रुका ...
हाथों में है रेत सा, इसक तेरा...

कुछ ऐसी ही असमंजस उठती है जेहन में, जब किसको सोचतें हुए मन विचलित होता जाता है.. कभी कभी हम समझ नहीं पाते के अचानक से जीवन में यह कौन सी खलबली होने लगी है.. उसकी मौजूदगी से आँखों से नूर छलकने लगता है, तो उसके न दिखने से आंखें बेजान सी होकर रह जाती है.. एक पल में वो खुद का हिस्सा लगता है तो दूसरे ही पल जैसे कोई कहानी या किस्सा लगता है...

उस पार तू है, इस पार मैं
लगता है डूबूँगी इस बार मैं
जाने कहाँ है ले चला इसक तेरा...

न मंज़िल का पता है, ना किस्मत का.. फिर भी विचारों में हम साथ-साथ चलते रहते हैं.. फासलों ने धागों को कमजोर नहीं होने दिया है.. ना खुद का होश है, ना पता तुम्हारा.. फिर भी सपनें बुनकर तुम्हारे ख़्यालों का दामन पकड़कर तुम्हारी गली चली आ रही हूँ.. जब कि मैं खुद नहीं जानती, जिस रस्ते मैं निकल चुकी हूँ, उस सफर की मंज़िल और अंजाम क्या है...

कुछ देर तुझको भी तक लूँगी मैं
पलकों के कोनों में रख लूँगी मैं
है सुबह के ख्वाब सा इसक तेरा.....

एक आस सी बंधी है, कहीं किसी दिन मिल जाओगे, यूहीं चलते चलते.. और तब न कुछ तुम कहोगे, न कुछ मुझे कहना हो तुमसे, वक़्त की सुई भी ऐसी अटक जाएं जैसे 'नजरें'.. ताऊम्र उस तस्वीर को रूह में बसाकर रख लेना है, फिर क्या मालूम कभी दूसरी मुलाकात नसीब हो न हो.. एक पल में तुमको कुछ यूँ समेट लेना है सब कुछ कि फिर दुबारा मुझे बस ये कभी न दोहराना पड़े,
"उस पार तू है इस पार मैं, लगता है डूबूँगी इस बार मैं, जाने कहाँ है ले चला इस्सक़ तेरा...."

ताउम्र मुझे बस यह गुनगुनाना है,
"सारे जहाँ से है जुदा
इस्सक तेरा........" YJ

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