न मिला दिल का कदरदान इस ज़माने में,
यह शीशा टूट गया है देखने और दिखने में,
जी में आता है एक रोज़ शमा से पूछू ,
मज़ा किस में है, जलने में या जलाने में.
यह शीशा टूट गया है देखने और दिखने में,
जी में आता है एक रोज़ शमा से पूछू ,
मज़ा किस में है, जलने में या जलाने में.
1 comment:
Palak..aap ki rachna bahut sundar hai..bada hi pechida sawal hai yeh....
Ek gaana yaad aa gaya ise padhe ke...."Yeh shama to jali roshni ke liye..is shama se aag lag jaaye to yeh shama kya karein?"
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