मेरी चाहत था वो
मेरी आन भी था वो ,
मेरे खामोश लहजों की वो इक सदा भी था ,
रहता था सुबह - ओ - शाम वो मेरे वजूद में,
मेरी आवाज़ ... मेरा लहजा ... वो मेरी अदा भी था …
देता था मुझको ज़ख़्म वो बे-हिसाब मगर,
हमदर्द भी था मेरा वो मेरी वफ़ा भी था ,
अब उस के ज़िक्र पर अक्सर में खामोश रहती हूँ ,
कभी मेरी महोब्बत का चाँद था वो
पलक
4 comments:
खूबसूरत जज़्बात
Ohh My GOD!
Ishwar aapko yun hi likhne ki prerna de..kitna sundar likhti ho aap sach mein.....ehsaash ki gherayi saaf dikhayi padti hai is rachna mein.....
ये कैसी बेकरारी है,
वो बस एक चेहरा समझता है
मेरी आँखों में वो
हीरे सा चमकता है
मैं उसके दिल में रहता हूँ
वो मेरे दिल में रहता है
दिनों को चैन नहीं मुझको
ना रातो को नींद आती है
उसकी यादों की तड़पन मुझको
इतना क्यों सताती है
मैं उसकी याद में पिगलता हूँ
वो मेरी याद में जलता है
उसकी आँखों में रोता हूँ
उसके होठो पे हँसता हूँ
खबर उसको नहीं लेकिन
उसके सपनो में सोता हूँ
पर कैसे कहू उससे
उसे मैं कितना प्यार करता हूँ ….
Beautiful as always.
It is pleasure reading your poems.
Post a Comment