Sunday, October 24, 2010

सोचते है तुम्हे ........


अक्सर सोचा करते है, तुम्हे
सुबह-शाम .... सोते - जागते
डायरी को शब्दों से भरते
कभी....किसी किताब के
पन्नो को पलटते - पलटते
उड़ती नीली-पीली पतंगों के
धागों से उलझते हो, सोच में
सोचते है ...क्यों सोचते है सोचते
जंगली कंटीले बेंगनी फूलो से
अक्सर चुभ जाते हो, सोच में
कई बार सोचा....दूर रखे तुम्हे
इस बेमतलबी सोच के दायरों
से गर्म हथयलियो पर बर्फ पिघले
ऐसा कुछ महसूस कर रुक जाते
टिमटिमाते दियो को इकटक देखे
तो ना जाने क्यों आंसू बन छलक जाते
सोचते है....क्या तुम भी सोचेते हो
जैसे हम सोचते है, हर घडी तुम्हे

3 comments:

संजय भास्‍कर said...

इतने सारे खूबसूरत एहसास एक साथ ...
कैसे समेटे इन्हें एक टिप्पणी में
बहुत ख़ूबसूरत हमेशा की तरह ...!

संजय भास्‍कर said...

Dear Palak ji..

Beautiful as always.
It is pleasure reading your poems.

महेन्‍द्र वर्मा said...

‘क्या तुम भी सोचते हो‘...मासूम सा सवाल है।...सुंदर रचना।