वो दिंन , वो रातेथे कितने सुहाने
वो बेबाक रहना और बेफ़िक्र घूमना
ना खाने की चिंता , ना सोने की परवाह ,
किताबे सिराहने रख के
चुपके से आंखो का मूंदना
सुबह को रात और रात को सुबह करना,
ना अपना खयाल और ना औरो की सोचना
बस खेल खेल मे समय का गुजरना
वो दोस्तो का साथ और गर्मियो की च्हुट्टिया
वो रातो को बैठ क्रर् किस्सो का कहना
हर एक बात पर बेखोफ हसना
ना डरना ना सहना बस मस्ती मे रहना
वो चाय की झूटी चुस्की
वो आधी सी रोटी
ना तेरा ना मेरा
बस था कितना अपना
बहुत याद आते है
वो बचपन के दिन
और बचपन की राते
वो बेबाक दिन और बेखोफ राते...........
वो दिंन , वो रातेथे कितने सुहाने
वो बेबाक रहना और बेफ़िक्र घूमना
ना खाने की चिंता , ना सोने की परवाह ,
किताबे सिराहने रख के
चुपके से आंखो का मूंदना
सुबह को रात और रात को सुबह करना,
ना अपना खयाल और ना औरो की सोचना
बस खेल खेल मे समय का गुजरना
वो दोस्तो का साथ और गर्मियो की च्हुट्टिया
वो रातो को बैठ क्रर् किस्सो का कहना
हर एक बात पर बेखोफ हसना
ना डरना ना सहना बस मस्ती मे रहना
वो चाय की झूटी चुस्की
वो आधी सी रोटी
ना तेरा ना मेरा
बस था कितना अपना
बहुत याद आते है
वो बचपन के दिन
और बचपन की राते
वो बेबाक दिन और बेखोफ राते...........पलक
2 comments:
Sach me ye din to hamesha yaad rahenge....
Pearl...
NAYE BLOG PAR BADHAI HO. BAHUT ACHCHA LAGA.
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