आज वो सूखा गुलाब दिखा,
उस डायरी के पीले पन्नों में।
याद है? तुमने कहा था
जब आओगे तब नज़र भर देखेंगे उन्हें,
आज वो पन्ने बिखर रहे हैं,
अक्षरों की स्याही घुल रही है वक़्त में,
लेकिन तुम्हारे आने का इंतजार आज भी है।
हर आने वाले खत पर लगता है,
ज़रूर बर्फीली पहाड़ियों से तुमने भेजी होंगी,
दरवाज़े की हर खट-खट पर लगता है,
तुम खड़े होगे,
मेरे मनपसंद फूल लिए।
वो कहते हैं ना
सुकून मिलता है उम्मीद में,
सामने एक मढ़। हुआ मेडल रखा है
और तुम्हारी वर्दी भी,
एक बार आकर देख तो जाओ
कितने करीने से संजोई है तुम्हारी हर एक याद,
मगर जानती हूं कभी लौटोगे नहीं तुम...हमेशा के लिए जो अकेला कर गए हो।
1 comment:
बहुत सुंदर रचना.... अंतिम पंक्तियों ने मन मोह लिया...
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