आज गुजरा जब पलटन के साथ एक गांव से
ना जाने क्यु अपना सा लगा
आ गया में घर अपने जाने क्यों सपना सा लगा...
रुला गया झोंका हवा का....
ना जाने क्यु वो आंगन घर अपना सा लगा...
याद दिला रही थी गलियां वो अपने गांव की....
पीपल की छांव की...
वो खेतो की फसल रह गयी पीछे फिर से
मुसाफिर थे हम निकल गए आगे
दूर पर जाने क्यूं वो गांव अपना सा लगा...
जय_हिन्द...
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