Wednesday, January 10, 2018

आज गुजरा जब पलटन के साथ एक गांव से

ना जाने क्यु अपना सा लगा

आ गया में घर अपने जाने क्यों सपना सा लगा...

रुला गया झोंका हवा का....

ना जाने क्यु वो आंगन घर अपना सा लगा...

याद दिला रही थी गलियां वो अपने गांव की....

पीपल की छांव की...

वो खेतो की फसल रह गयी पीछे फिर से

मुसाफिर थे हम निकल गए आगे

दूर पर जाने क्यूं वो गांव अपना सा लगा...

जय_हिन्द...

Saturday, January 6, 2018

आँखों के सागर में ये जलन हैं कैसी

आज दिल को तड़पने की लगन हैं कैसी

बर्फ की तरह पिघल जाती है फौजीयों की जिंदगी...

ये तेरी दूर रहने की कसम हैं कैसी….!

जय हिंद