Wednesday, May 12, 2010

प्यार किसे तुम कहते हो?


खामोश जुबां के लफ़्ज़ों में
कुछ पोशीदा सी बातें है

इन पोशीदा सी बातों में
कुछ चाहत की बरसातें हैं

इन बातों को हम मुद्दत से
सीने में छुपाये बैठे हैं

कुछ पाए बिना कुछ खो देना
ये प्यार में हम ने सीखा है

सूरज में, चाँद सितारों में
हर शय मैं तुम्ही को देखा है

ये प्यार नहीं तो तुम्ही कहो…
फिर प्यार किसे तुम कहते हो???


palak ( PG )

2 comments:

संजय भास्‍कर said...

सुन्दर भावों को बखूबी शब्द जिस खूबसूरती से तराशा है। काबिले तारीफ है।

संजय भास्‍कर said...

सूरज में, चाँद सितारों में
हर शय मैं तुम्ही को देखा है

इन पंक्तियों ने दिल छू लिया... बहुत सुंदर ....रचना....